भागना खुद के लिए....

कितनी चीजें आपको मजबूर करती है सोचने के लिए...फिर इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी मे वक़्त भी कहाँ है थोड़ी देर बैठकर कुछ सोचने की...फिर भी जब भी HIGHWAY मूवी देखता हूँ...हर बार अलग अनुभव होता है...हर बार ना जाने कुछ अलग छूता है अंदर ...

मूवी मे "वीरा" (आलिया भट्ट) हमेशा से भागना चाहती है...रिश्तो से जो उसे समझ मे नहीं आते...घुटन होती है, उस दुनिया से जहाँ आज़ादी नहीं है बोलने की, मह्सुश करने की अपने सच को...पर सब कुछ पीछे छोड़ने को हिम्मत भी तो चायेह...फिर हिम्मत कर भी ली थोड़ी...तो अपने लिए भागना अपनों को छोड़कर कितना स्वार्थी लगता है...वीरा के पास वजह थी भागने की... सब छोड़कर...फिर भी वो नहीं भागती...उसे भी महावीर (रणदीप हूडा) का साथ लगता है एक बार खुद के लिए भागने मे...सोचना सिर्फ अपने लिए...बिना किसी गिल्ट के...

मुझे नहीं पता पहली बार कब महसूस किया था...की सब छोड़कर दूर भाग जाना है...मुझे अक्सर ऐसे सपने आते है की मे ऐसे सहर हूँ...जहाँ कोई नहीं जनता मुझे...मेरे पास सच मे कोई वजह नहीं है भागने की...बस अंदर एक एहसास है...रिश्ते मुझे कभी पसंद नहीं आये...पर भागने को कितनी हिम्मत लगती है...मुझमे नहीं है उतनी हिम्मत...फिर मेरे पास तो कोई वजह भी नहीं है...

ठीक ठीक सब कुछ याद नहीं है...टुकड़ो मे याद है...मैं 4 साल का रहा हूँगा...दीदी, जुड़वाँ भाई और मैं गाँव मे एक ही स्कूल मे पढ़ा करते थे...उस रोज़ स्कूल से घर आते दीदी कुछ देर और रुक गयी थी अपने दोस्तों के साथ खेलने को...भाई और मैं निकल गए थे घर को...घर के पास वाले बस अड्डे पे माँ को देखा था एक बक्से के साथ...उन्होंने गाँव वाला घर छोड़ दिया था...हम दोनों को लेकर माँ सहर जानी वाली बस पर चढ़ गई थी...दीदी भी आ चुकी थी तब तक... माँ ने कभी पूरा सच नहीं बताया गाँव छोड़ने की...बस हल्का हल्का पता था दादा दादी वजह थे...माँ ने कसम खायी थी फिर कभी नहीं लौटने की...वज़ह जो भी रही हो पर कितनी हिम्मत लगी होगी छोड़ना अपने गांव को...उस घर को जहाँ पहली बार डोली पर बैठकर आयी थी...दादा दादी का बर्ताव शुरू से अच्छा नहीं था..पर माँ को सब कुछ छोड़कर जाने की हिम्मत जुटाने मे 10 साल से ज्यादा लग गए...शायद सिर्फ अपने लिए भागना होता तो हिम्मत नहीं कर पाती...पर भागना था इस बार खुद के लिए, और अपने बच्चो के लिए...

कहने को बस इतना है खुद के लिए भागना क्यों इतना मुश्किल है..क्यों खुद के लिए सोचना गिल्ट का एह्साह कराता है...क्यों नहीं हम भाग सकते है सिर्फ इसलिए की हम ऐसा चाहते है..

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